शुक्रवार, 3 अप्रैल 2009

this is a part of my poem which i consider one of my good one. this was written after Tsunami calamity which had taken away many lives. Destroyed many buildings, roads and structures. the life of millions were disturbed. i want to pay them my tribute who died there through this poem.



इंसान क्या चीज है ये आज फ़िर बतलाता हूँ

ऊँची लहर उठाकर तुमने, बेघर बना दिया है मुझको

मंजर--तबाही हर ओर बिछा, सोचा हरा दिया है मुझको

लाशों के ढेर लगातुमने, माना रुला दिया है मुझको

फ़िर भी झुका नहीं हूँ मै, ये आज दिखलाता हूँ तुझको

गिरे खंडहर की छाती पर मैं, फ़िर से महल उठता हूँ

इंसान क्या चीज है, ये आज फ़िर बतलाता हूँ



मेरी सृजन-शीलता को, तुने आज फ़िर से पुकारा है

मेरे दृढ़ निश्चय को तुने आज पुनः ललकारा है

मेरे कदम अपनी डगर पर, फ़िर बढ़ते चले जायेंगे

तेरे ये गर्जन घनेरे, सिर्फ़ भभकी बन जायेंगे

नहीं रुका हूँ नहीं रुकुंगा, मै ये वचन दोहराता हूँ

इंसान क्या चीज है ये आज फ़िर बतलाता हूँ