रविवार, 16 अगस्त 2009

स्वाधीनता की पूर्णता


आज भारत को आजाद हुए ६२ साल हो गए हैं। इस दौरान हमने अनेक उपलब्धियां हासिल की और नई ऊँचाइयों को छुआ है। एक सवाल जो हर बार पूछा जाता है वह ये है कि क्या हमने सही मायनों में आजादी हासिल की है? क्या हम वास्तव में स्वाधीन हुए हैं?
मेरा विचार है कि स्वाधीनता कोई एक मंजिल नहीं है बल्कि यह एक रास्ता है, जो हमें अपनी और एक समूह के रूप में समाज की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। १५ अगस्त १९४७ को हमें अधिकार मिला की हम अपनी इच्छा के अनुसार सरकार बना सकते हैं। अपने निति एवं नियम ख़ुद बना सकते हैं।और यह कम महत्त्वपूर्ण बात नहीं है। क्योंकि आज अगर मैं इस बारे में कुछ कह या लिख पा रहा हूँ तो यह इसी की देन है। पर यह तो पूर्ण स्वाधीन होने की दिशा में एक प्रयास ही था।
कई आलोचक ये कहते हैं कि उस दिन सिर्फ़ नाम बदले गए बाकी सरकारी सिस्टम नहीं बदला। मैं इस बात से काफी हद तक सहमत हूँ। पर साथ ही ये मानता हूँ कि कोई भी बदलाव, वो भी भारत जैसे बड़े देश में कुछ दिनों में नहीं किया जा सकता था। साथ ही विभिन्नताओं से भरे देश में कोई भी नया सिस्टम लेन के लिए काफी मेहनत कि जरुरत पड़ती है। अफ़सोस तो यही है कि हमारे नेता कुछ जरुरी बदलावों, जैसे कि संसद की स्थापना, लोकतान्त्रिक व्यवस्था को छोड़कर कुछ और बदल नहीं पाये। सरकारी विभागों की कार्यपद्धति तथा स्थानीय निकायों में जिस तरह के बदलाव की जरुरत थी वह नहीं आई। पंचायत जैसी सालों पुरानी संस्था को संवैधानिक रूप देने में ही दशकों लग गए।

यही हाल दूसरे क्षेत्रों का भी रहा। शिक्षा को आत्मनिर्भरता की ओर उन्मुख बनाने के प्रयास की वकालत उस समय के नेताओं ने की थी। पर मैकाले की क्लर्क बनने वाली शिक्षा पद्धति अभी तक कायम है। इसके बावजूद हमने अपनी काबिलियत दुनिया के सामने रखी है। आई.टी.से लेकर प्रबंधन तक सभी ओर भारतीय पेशेवरों की धूम है। फिर भी जब मौलिक रिसर्च की बात की जाती है तो भारतीय और मुख्य रूप से भारत में किए गए शोधों की संख्या व गुणवत्ता (क्वालिटी) अन्य देशों की तुलना में काफी कम है। इसका दोष हमारी शिक्षा पद्धति में विद्यमान दोषों को जाता है।
आज उस सोच को पूरी तरह बदलने कि जरुरत है जो हर बार पश्चिम का मुंह देखती है। अपनी भाषा, अपनी संस्कृति, अपने विचारों के प्रति गौरव कि भावना जगाने कि जरुरत है।
आज देश को अपने आप को पहचानने की जरुरत है। हमें स्वयं को जानने की जरुरत है। हमने अतीत में काफी कुछ किया है। गुलामी के दिन हो या फ़िर उस समय की बनाई गई व्यवस्था में बिताये गए दिन; हमारा योगदान जीवन के विभिन्न क्षेत्रों रहा है।
आज जरुरत है की हम अपने देश को उसका खोया हुआ गौरव दिलाने के लिया जी जान से जुट जायें। और उन सभी क्षेत्रों में जहाँ सुधार की जरुरत है उनके लिए जमीं तैयार करें; ख़ुद को तैयार करें। आज किसी क्रांति की अपेक्षा तो नहीं है, पर धीरे धीरे सुधार की उम्मीद तो की ही जा सकती है। और ये काम स्वयं हमें करना है। क्योंकि ये देश अपना है किसी दूसरे का नहीं। हम अपनी उपलब्धियां ना ही किसी से बाँट सकते हैं ना ही कोई हमारे दुःख दूर कर सकता है। जो भी करना है वह हमें ही करना है; ताकि हम अपनी स्वतंत्रता को पूर्णता दे सकें। उन सपनों को पूरा कर सकें जो आजादी के समय हम करोड़ों भारतवासियों ने एक साथ देखा था।


जय हिंद